Sitare Zameen Par Movie Review : 2025 की बहुप्रतीक्षित फिल्म “सितारे ज़मीन पर” का आज पहला शो रिलीज़ हुआ और दर्शकों की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही। आमिर खान द्वारा निर्मित और निर्देशित इस फिल्म ने 2007 की ब्लॉकबस्टर “तारे ज़मीन पर” के नाम से प्रेरणा ली है, लेकिन कहानी एकदम अलग है। हालांकि इस फिल्म में भी समाजिक मुद्दे को उजागर करने की कोशिश की गई है, मगर उसका प्रभाव दर्शकों पर वैसा नहीं पड़ा जैसा उम्मीद की जा रही थी।
Sitare Zameen Par Movie Review : फिल्म की कहानी एक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों और एक टीचर के इर्द-गिर्द घूमती है जो इन बच्चों के टैलेंट को भली-भांति जानता है और उन बच्चों के टैलेंट को सबके सामने लाने की कोशिश करता है। शुरुआत में कहानी थोड़ी इमोशनल लगती है, लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, स्क्रिप्ट बिखरती नजर आती है।
पहला हाफ कुछ हद तक प्रभावशाली है, खासकर बच्चों की मासूमियत और उनकी समस्याओं को दिखाते वक्त। लेकिन दूसरा हाफ ऐसा लगता है जैसे मानों इसे खींचा जा रहा हो एकदम नॉर्मल। कई बार ऐसा लगता है कि फिल्म को जबरदस्ती इमोशनल बनाने की कोशिश की जा रही है।
एक्टिंग कुछ कमाल, कुछ कमजोर
आमिर खान, जो कि फिल्म में एक शिक्षक की भूमिका में नजर आ रहे हैं, हमेशा की तरह अपने रोल को बहुत ही अच्छे तरीके से निभाते नजर आ रहे हैं, लेकिन उनकी परफॉर्मेंस “तारे ज़मीन पर” मूवी जैसी नजर नहीं आई है। ” सितारे जमीन पर” मूवी में उनकी वो ताजगी और सादगी नजर नहीं आ रही है।
फिल्म में नए बच्चों ने बहुत ही अच्छे ढंग से अपना रोल प्ले किया है, खासकर मुख्य किरदार निभा रहे बच्चे ने दिल जीत लिया है। सहायक कलाकारों में कुछ लोगों की एक्टिंग मिली-जुली रही है, जिससे फिल्म का असर थोड़ा कम होता नजर आ रहा है।
बैकग्राउंउ म्यूजिक :
फिल्म का म्यूजिक बहुत ही सिम्पल और मैसेज देता हुआ प्रतीत होता है। प्रसून जोशी के लिखे गीत दिल को छूते हैं लेकिन कोई भी गाना ऐसा नहीं है जो लंबे समय तक याद रहे। शंकर-एहसान-लॉय की जोड़ी इस बार थोड़ा और अच्छा काम कर सकती थी।
सिनेमैटोग्राफी
सिनेमैटोग्राफी काफी अच्छी रही है – स्कूल, बच्चों की दुनिया और क्लासरूम के दृश्य बहुत ही खूबसूरत ढंग से पेश किए गए हैंं। मगर एडिटिंग थोड़ी और कसी हुई होती तो फिल्म और भी बेहतर दिख सकती थी।
💬 मैसेज और सोशल इम्पैक्ट
फिल्म एक अच्छा मैसेज देने की कोशिश करती है – कि हर बच्चा खास होता है और हमें उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए। आज के समय में जब पढ़ाई इतनी कठिन हो गई है, ऐसे विषय का उठाया जाना बहुत ही अच्छा कदम है लेकिन काफी दर्शक पहले ही इस संदेश को “तारे ज़मीन पर” जैसी फिल्मों में देख चुके हैं, इसलिए इसमें कुछ नया होता हुआ नजर नहीं आ रहा है।
❌ फिल्म कहां रह गई पीछे
- स्क्रिप्ट में नयापन नहीं: कहानी पहले से देखी-सुनी लगती है।
- भावनात्मक दोहराव: कई दृश्य पुराने हिंदी फिल्मों से प्रेरित लगते हैं।
- धीमा गति: खासकर दूसरा हाफ दर्शकों को थका देता है।
- डायलॉग्स में गहराई की कमी: प्रेरक डायलॉग्स कम और बनावटी ज़्यादा लगते हैं।
✅ वो पल जिसने फैंस को खुश किया
- बच्चों का सहज अभिनय
- कुछ दिल को छूने वाले दृश्य
- शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाने की कोशिश
- खूबसूरत लोकेशन्स और सिनेमैटोग्राफी
ओवरऑल
“सितारे ज़मीन पर” एक अच्छा इरादा लेकर बनाई गई फिल्म है, जो दिल से मैसेज देना चाहती है लेकिन स्क्रिप्ट की कमजोरियों और निर्देशन के रिपीटेशन की वजह से यह फिल्म दर्शकों पर वैसा प्रभाव नहीं छोड़ पा रही जैसा “तारे ज़मीन पर” ने छोड़ा था।
अगर आप बच्चों की मासूमियत, सोशल मैसेज से भरी और इमोशनल फिल्में देखना पसंद करते हैं, तो आप जरूर देख सकते हैं।ओवरऑल यह एक फैैमिली मूवी है।