“Panchayat Season 4 Review : क्या इस बार फुलेरा की राजनीति ने पहले जितना मज़ा दिया?”

Panchayat Season 4 :आखिरकार जिस मुस्कान का हम सबको बेसब्री से इंतजार था। वह आज अमेजॉन प्राइम वीडियो ने पंचायत का चौथा सीजन रिलीज़ करके हमें दे दी। पंचायत का चौथा सीज़न पहले जितना हंसाता नहीं, लेकिन इमोशंस बहुत ज़्यादा मजबूत है। कहानी में इस बार राजनीति, रिश्तों और जिम्मेदारियों के बीच झूलता फुलेरा गांव नजर आता है। ये सीजन रोमांस, सिस्टम खामियों, गांव की सच्चाई और इंसानी भावनाओं को बारीकी से पकड़ता हुआ नजर आ रहा है।

Panchayat season 4 : सीजन की शुरुआत होती है अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) की वापसी से। ट्रांसफर कैंसिल होने के बाद वो दोबारा फुलेरा पहुंचते हैं। लेकिन अब गांव वैसा नहीं रहा — राजनीतिक खेमेबाजी तेज़ हो गई है, और ‘विपक्ष’ सिर उठाने लगा है। प्रधानी जी, विकास और प्रह्लाद के साथ सचिव एक बार फिर गांव की समस्याएं सुलझाते नजर आते हैं। इस बार मुख्य मुद्दे हैं — चुनाव की तैयारी, स्कूल में शिक्षकों की कमी, सड़क निर्माण, और सरकारी योजनाओं का पेंच। इन समस्याओं के बीच सचिव और रिंकी (संजेता साकार) के रिश्ते में धीरे-धीरे एक जुड़ाव आता है, जिसे बहुत ही सादगी से स्क्रीन पर दिखाया गया है। हर एपिसोड में एक छोटा मुद्दा है, जो किसी न किसी समाज के पहलू को टच करता है लेकिन सीज़न 3 जैसी पकड़ इस बार थोड़ी कम नजर होती हुई आ रही है।

कितना है एक्टिंग में दम :

1. जितेंद्र कुमार (अभिषेक) : कम शब्दों में गहरी बातें कहने की कला में माहिर। इस बार उन्होंने फिर अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया है।

2. नीना गुप्ता (मां/प्रधानी) : कम स्क्रीनटाइम रहा लेकिन असरदार रहीं। उन्होंने एक समझदार नेता और मां के बीच बेहतरीन संतुलन दिखाया।

3. रघुवीर यादव (प्रधान जी) :शो की धड़कन कहे जाने वाले प्रधान जी का देसी अंदाज़ और पंच लाइनों की टाइमिंग दर्शकों को बांधे रखती है।

4. चंदन रॉय (विकास): विकास ने हर बार की तरह कॉमिक टाइमिंग शानदार रखी है। वो ऐसे किरदार हैं जो शो में जान डालते हैं।

5. फैसल मलिक (प्रह्लाद): इमोशनल ट्रैक इस बार उन्हीं के हिस्से आया और उन्होंने बहुत ही अच्छी एक्टिंग का लोहा मनवाया है।

निर्देशन और तकनीकी पक्ष:

निर्देशक दीपक कुमार मिश्रा ने इस बार भी गांव और आमजन में होने वाली सामान्य समस्याओं और मीठी खट्टी नोंकझोंक को बरकरार रखा है। कैमरा वर्क और एडिटिंग में बहुत ही अच्छा कम किया है। कोई ग्लैमर नहीं, कोई ओवरड्रामा नहीं — बस असली जिंदगी जैसे लोग और उनके असली संघर्ष। हर फ्रेम में फुलेरा गांव की मिट्टी, धूप, दीवारों की दरारें और चाय की दुकान की सादगी झलकती है।

डायलॉग्स और ह्यूमर:

इस बार पंच लाइनों की चमक थोड़ी फीकी है। पहले के सीज़न्स में बातचीत और ह्यूमर शो की जान थे। इस बार ह्यूमर थोड़े हिस्सों में है, लेकिन जहां भी है — बिल्कुल नेचुरल और रिलेटेबल है। “काम करेगा तो बदनामी हमारी, और नाम तेरा!” — ऐसे डायलॉग सीजन में सटीक बैठते हैं।

क्या अच्छा है:

  1. सीरीज में रियलिटी का ऊंचा लेवल और रिंकी की धीमी पर मीठी केमिस्ट्री
  2. मुद्दों को सही से समझना
  3. डायरेक्शन में परफेक्शन

क्या कमजोर रहा:

कुछ एपिसोड में कहानी बहुत स्लो लगती है।पिछले सीज़न जैसा टाइट ह्यूमर मिसिंग है।रिंकी का किरदार और बेहतर तरीके से लिखा जा सकता थाराजनीतिक प्लॉट की गहराई में कमी—🔚 निष्कर्ष (Conclusion):Panchayat Season 4 एक ठोस लेकिन हल्का अनुभव है। यह दिल छूता है लेकिन दिमाग पर ज़्यादा असर नहीं डालता। जो लोग पंचायती राजनीति और गांव की सादगी को समझते हैं, उन्हें यह सीज़न पसंद आएगा।अगर आपको हंसी, इमोशन और देसी कहानियों का संतुलन चाहिए — तो यह सीजन निराश नहीं करेगा।

Panchayat season 4 Review

Leave a Comment