ज़रा सोचिए – आप ट्रेन में अपनी सीट पर गहरी नींद में हैं, डिब्बों में सिर्फ़ खर्राटों की आवाज़ है, खिड़की के बाहर घना अंधेरा पसरा हुआ है मगर ठीक उसी समय, Railwaymen लोको पायलट की केबिन में क्या चल रहा होता है? क्या वो भी ऊंघ जाते हैं? क्या वो मोबाइल चलाते हैं? या कुछ और?आज हम खोलते हैं इस सवाल का सच्चा और चौंकाने वाला जवाब!

Railwaymen की नींद से भरी लड़ाई
Railwaymen का रात के समय ट्रेन चलाना सिर्फ़ एक नौकरी और पेशा नहीं, बल्कि इसमें हजारों लोगों की जिम्मेदारी होती है और हिम्मत का असली टेस्ट भी रात्रि में ही होता है। Railwaymen लोको पायलट के सामने सबसे बड़ा दुश्मन होता है – नींद।
- जब बाहर घना कोहरा हो, रास्ता दिखे नहीं, तब भी पलकें झपकाना मना है।
- उन्हें हर सिग्नल, हर प्वाइंट, हर मोड़ पर नज़र रखनी पड़ती है।
- ट्रेन की रफ्तार को भी लगातार कंट्रोल में रखना होता है, ताकि किसी भी इमरजेंसी में ट्रेन को तुरंत रोका जा सके।
केबिन के अंदर की असली दुनिया
केबिन के अंदर की ज़िंदगी बाहर से जितनी शांत दिखती है, उतनी होती नहीं:
✅ Railwaymen लोको पायलट हर कुछ मिनट में सिग्नल की लाइट को पहचानना पड़ता है और उसे हर सिगनल का नंबर जोर से चिल्लाना होता है और सिगनल का कलर भी दोहराना पड़ता है।
✅ असिस्टेंट लोको पायलट को हर स्टेशन, क्रॉसिंग या लेवल क्रॉसिंग की जानकारी नोट करती रहनी पड़ती हैं।
✅ स्पीडोमीटर, प्रेशर गेज, और बाकी मीटर पर लगातार नज़र रखते हैं।
✅ कंट्रोल रूम से रेडियो पर अपडेट लेते हैं – जैसे कि आगे ट्रैक पर कोई रुकावट या स्लो सेक्शन हो तो तुरंत तैयार रहें।

नींद से कैसे लड़ते हैं? कैसे करते हैं इसको दूर
जब पूरी ट्रेन गहरी नींद में लोको पायलट के भरोस सो रही होती है, ऐसे में देखा जाए तो लोको पायलट और असिस्टेंट लोको पायलट को भी नींद कहीं न कहीं आती ही होगी। मगर ये कभी हिम्मत नहीं हारते और किसी न किसी तरीके से अपनी नींद को दूर कर ही लेते हैं आइए देखें कौन-से तरीकों से वे अपनी नींद को भगाते हैं –
- केबिन में बातें करते रहते हैं, ताकि दिमाग एक्टिव रहे।
- पानी, चाय या कॉफी पीते रहते हैं।
- थोड़ी-थोड़ी देर पर सीट बदलकर बैठते हैं, शरीर को स्ट्रेच करते हैं।
- केबिन में हल्की रोशनी या रेडियो की आवाज़ से भी नींद भगाते हैं।
अचानक खतरा – तुरंत एक्शन
रात में सबसे डरावनी चीज़ होती है – अचानक ट्रैक पर कुछ दिख जाना:
- अगर अचानक जानवर, पेड़ की डाली, या कोई इंसान ट्रैक पर आ जाए – तो पलक झपकते ही ट्रेन रोकनी पड़ती है।
- अगर सिग्नल रेड दिखे, तो तुरंत ब्रेक लगाना होता है, वरना हादसा हो सकता है।
- कई बार रात में तकनीकी दिक्कतें भी आ जाती हैं, जिन्हें वहीं केबिन से ही संभालना पड़ता है।
क्यों हैं लोको पायलट सच्चे हीरो ?
जब हम गहरी नींद में सफ़र का मज़ा ले रहे होते हैं, तो ये लोग हर सेकंड सतर्क रहते हैं। इनके लिए हर रात एक जंग जैसी होती है – नींद, थकान और सैकड़ों ज़िंदगियों की ज़िम्मेदारी के बीच।अगर एक सेकंड के लिए भी ये चूक जाएँ, तो बड़ा हादसा हो सकता है। इसीलिए ये लोग सिर्फ़ ट्रेन नहीं चलाते – ये हमारी रात की नींद की हिफ़ाज़त भी करते हैं।
रेलवे की अधिकारिक वेबसाइट पर जाने भर्ती संबंधी और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां : https://indianrailways.gov.in/
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